मधुमेह से जुड़े नए अमेरिकी गाइडलाइंस से भारत में क्यों है चिंता
सेहतराग टीम
मधुमेह यानी डायबिटीज भारत में किस कदर जड़ें जमा चुका है यह किसी से छिपा नहीं है और डायबिटीज से जुड़े अन्य नुकसानों से भी लोग भली भांति परिचित हैं। इंटरनेशन डायबिटीज फाउंडेशन की मानें तो भारत में पिछले साल यानी 2017 में डायबिटीज के करीब सवा सात करोड़ मामले सामने आए थे। भारत में इस बीमारी को लेकर अब जागरूकता फैलनी शुरू हुई है। ऐसे में इस बीमारी के इलाज को लेकर अमेरिका से जारी हुए नए गाइडलाइंस ने भारत के चिकित्सकों को चिंता में डाल दिया है और इन चिकित्सकों का कहना है कि नए गाइडलाइन को अपनाने से देश में डायबिटीज से जुड़ी जटिलताएं और बढ़ सकती हैं।
दरअसल नई गाइडलाइंस का लक्ष्य पूरी दुनिया में पिछले तीन दशकों से डायबिटीज के इलाज में अपनाएई जा रही गाइडलाइंस को रिप्लेस करना है मगर नए गाइडलाइंस को लेकर विशेषज्ञों में विवाद पैदा हो गया है।
भारत के मधुमेह विशेषज्ञों का मानना है कि नई गाइडलाइंस जिसके तहत खून में चीनी की निर्धारित मात्रा में ढील देने की बात कही गई है, न सिर्फ मधुमेह रोगियों में अन्य जटिलताएं बढ़ाएंगी बल्कि इलाज के प्रोटोकॉल या कहें तरीकों में भी अनावश्यक संदेह पैदा कर देंगी। इसी लिए इन विशेषज्ञों की राय है कि नई गाइडलाइंस से भारतीयों को बाहर रखा जाना चाहिए।
गाइडलाइन में क्या बदलाव
दरअसल अमेरिकन कॉलेज ऑफ फीजिशियन्स ने नए दिशानिर्देश जारी किए हैं और इसके तहत मधुमेह की जांच के लिए किए जाने वाले HbA1c टेस्ट के मानकों में भारी बदलाव किया गया है। दरअसल ये खून का टेस्ट है जिसके जरिये पिछले कुछ महीनों में किसी व्यक्ति के रक्त में शुगर का स्तर पता लगाया जाता है। वर्तमान मानकों के अनुसार यदि HbA1c 6.5% पर हो तो इसे डायबिटीज का संकेत माना जाता है। अब इंटरनल मेडिसीन के डॉक्टरों के संगठन अमेरिकी कॉलेज ऑफ फीजिशियन्स ने सिफारिश की है कि मधुमेह का इलाज कर रहे डॉक्टरों को टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित मरीजों में HbA1c का स्तर 7% से 8% के बीच बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए। वर्तमान में डॉक्टर HbA1c का स्तर 6.5 से 7% के बीच रखने का प्रयास करते हैं और ये व्यवस्था पिछले 30 साल से चल रही है।
विरोध
अमेरिकी डॉक्टरों की इस सिफारिश पर डॉक्टरों का समुदाय ही दो फाड़ हो गया है और डॉक्टरों के कई संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। विरोध करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि नए दिशानिर्देशों को बाध्यकारी नहीं होना चाहिए और भारतीयों के मामले में इन दिशानिर्देशों की उपेक्षा की जानी चाहिए क्योंकि भारत में मधुमेह बेहद आक्रामक रूप में मौजूद है और इससे जुड़ी जटिलताएं मसलन किडनी और हार्ट की समस्याएं बहुत अधिक सामने आती हैं। इन डॉक्टरों का यह भी कहना है कि भारत में तीन संस्थाएं हैं जो भारतीय परिस्थितियों के अनुरूप गाइडलाइंस सामने रख सकती हैं। ये हैं इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर, रिसर्च सोसायटी फॉर द स्टडी ऑफ डायबिटीज इन इंडिया यानी आरएसडीडीआई और तीसरी एसोसिएशन ऑफ फीजिशियन ऑफ इंडिया यानी एपीआई।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
पिछले कई सालों से देश का सबसे प्रतिष्ठित मधुमेह इलाज केंद्र फोर्टिस सीडॉक (नई दिल्ली) के चेयरमैन और एम्स के पूर्व प्रोफेसर डॉक्टर अनूप मिश्रा कहते हैं कि हकीकत यही है कि भारत के चिकित्सक अमेरिकी गाइडलाइन्स को फॉलो करते हैं और इसलिए अमेरिकन कॉलेज ऑफ फीजिशियन्स की नई गाइडलाइंस का भारत पर भी खासा असर पड़ सकता है। मगर डॉक्टर मिश्रा ये भी कहते हैं कि यदि नई सिफारिशों के अनुरूप रक्त शर्करा के स्तर में ढील दी गई तो भारत में ज्यादा मरीज गंभीर जटिलताओं का सामना करने लगेंगे जबकि अभी ही इन जटिलताओं का बोझ काफी भारी है। इसे देखते हुए हमें नई गाइडलांइस का नजरंदाज करना चाहिए और HbA1c का अधिकतम स्तर 7% तक बनाए रखने को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।
(खबर द टाइम्स ऑफ इंडिया से साभार)
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